The Kashmir Files- कश्मीर की उस रात का असली सच, कैसे-कैसे ऐलान हुए आधी रात में..? जानिए पूरी कहानी

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द कश्मीर फाइल्स(The Kashmir Files) कश्मीर की उस रात का असली सच, कैसे-कैसे ऐलान हुए आधी रात में..?

द कश्मीर फाइल्स(The Kashmir Files) अब सिनेमाघरों में भी लग चुकी है। और दर्शकों को इस फिल्म की कहानी बहुत पसंद आ रही है। फिल्म में 1990 में कश्मीरी पंडितों को घर से बेघर करने की कहानी को दिखाया गया है। यह फिल्म अभिषेक अग्रवाल द्वारा बनाई गई है जिसमें मिथुन चक्रवर्ती और अनुपम खेर ने रोल किया है। और यह फिल्म  विवेक अग्निहोत्री द्वारा लिखित और निर्देशित है। अनुपम खेर,मिथन चक्रवर्ती, पल्लवी जोशी, दर्षन कुमार, पुनीत प्रासर स्टारर सब इस फिल्म का हिस्सा है.’द कश्मीर फाइल्स’ की सोशल मीडिया पर भी खूब चर्चा हो रही है। ये फिल्म 11 मार्च को रिलीज हुई थी। और अब तक देश के कई राज्य इस फिल्म को टैक्स-फ्री भी कर चुके हैं। आपको बता दे की यह बॉक्स ऑफिस पर बॉलीवुड की सबसे पहली फिल्म है जिसने बिजनेस में 3 दिन में 325% के प्रॉफिट का रिकार्ड बनाया है। फ़क़त 3 दिन में ही इस फिल्म ने अपनी लगी हुई रकम हासिल कर ली है। कल इस फिल्म को आए हुए सिर्फ चार दिन हुए थे और 40 करोड ये अब तक कमा चुकी है। आखिर क्यों पसंद आ रही है। ये दर्शको को फिल्म जानते है इस फिल्म के पीछे की पूरी सच्चाई
19 जनवरी 1990 की वो सबसे काली रात,जब कश्मीरी पंडितों की कोई मदद करने वाला नहीं था ये पूरी सच्ची कहानी करीब तीस साल बाद एक फिल्म The Kashmir Files के रूप में लौटकर आई है जिसने कश्मीरी पंडितों के दर्द को पूरी तरह से इस दुनिया के सामने लाकर खड़ा कर दिया है जिसको देखने के बाद रूह तक कांप गई दोस्तों ‘कश्मीरी पंडितों के दर्द पर बनी इस फिल्म The Kashmir Files ने एक बार फिर सच्चाई से साफ साफ पर्दा उठाया है. इस फिल्म को देखने के बाद कश्मीरी पंडित फिर से एक बार अपना दर्द बताने लगे हैं .इस कड़वे सच में ज़िन्दगी से ज्यादा मौत देखने को मिली है। कश्मीर के 19 जनवरी 1990 के वो मनहूस दिन की पूरी सच्ची  कहानी,चश्मदीद गवाह कश्मीरी पंडित संजय टिक्कू की जुबानी है। 
ये सवाल बार बार सामने आता है की आखिरी 19 जनवरी 1990 को कश्मीर घाटी में ऐसे क्या हो गया था कि कश्मीर पंडितोंं को भाग जाना पड़ा और अपना घर छोडने के लिए मजबूर होना पड़ा था।

:द कश्मीर फाइल्स(The Kashmir Files)

 

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कश्मीरी पंडितों की दर्दभरी आपबीती(The Kashmir Files)-

कड़वी सच्चाई कश्मीरी पंडित दिन ब दिन कम होते गए ज़िन्दगी से ज्यादा मौत मिली.

हिंदुस्तान का दिल कहे जाने वाले जिस कश्मीर में कश्मीरी पंडित हजारों साल से गुज़र बसर करते आ रहे थे. जो कभी कश्यप ऋषि जी की भूमि हुआ करती थी. जिस कश्मीर में दरिया हैं, पहाड़ हैं, कुदरत की नक्काशी है, उसी कश्मीरी जन्नत में कभी सामूहिक चिताएं भी जली थीं. 1990 का ये दशक कश्मीर में वशहत का वो दौर लेकर आया था, जिसे आज से पहले ना किसी ने देखा था, ना सुना था.सभी कश्मीरी पंडितों को बेरहमी से मारा गया था. बेटियों के साथ ज़बरदस्ती की गई.और फिर कश्मीरी पंडितों को अपना घर छोड़कर दर बदर भटकना पड़ा था. तीन साल बाद ये पूरा माजरा इस फिल्म के रूप में सामने आया है. आपको जानकर बड़ी हैरानी होगी कि उस वहसत भरे दौर में आतंकवादियों और पाषंडी ने मिलकर 20 हजार कश्मीरी पंडितों के घरों को जलाकर फूंक दिया था. कश्मीर में 105 स्कूल कॉलेज और 103 मंदिरों को तोड़ कर रख दिया गया था. 1100 से ज्यादा कश्मीरी पंडितों को बड़ी बेदर्दी से मारा गया था.जनसँख्या आकंड़े भी इस बात का सबूत देते है. आपको बता दे की साल 1947 तक कश्मीर में हिंदुओं की जन्संख्या 15% थी. जो सन 1981 में मात्र  5% रह गई थी. सन 2001 में घाटी में हिंदुओं की जन्संख्या 2.77% ही रह गई थी. और फिर  2011 में ही ये आबादी कुछ बढ़कर 3.42 % हो गई थी. और अगर यहां सिर्फ हिंदुओं की बात करें तो साल 2011 में 2.45% हिंदू घाटी में मौजूद थे. सिर्फ एक मात्र श्रीनगर में साल 2001 में 4 % हिंदू थे जो सन 2011 में सिर्फ 2.6 % रह गए हैं. जन्संख्या आंकड़ों के मुताबिक, अब कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के तक़रीबन 808 परिवार रह गए हैं. मात्र करीब साढ़े तीन हजार कश्मीर पंडित घाटी में अब मौजूद हैं. कश्मीरी पंडितों के घरो का दर्द सुनकर आपके रौंगटे खड़े हो जाएंगे. कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की मृत्यु का सिलसिला 19 जनवरी 1990 को शुरू नहीं हुआ था. बल्कि वो तो सिर्फ अत्याचार का चरम था.

सन 1990  में कश्मीर पंडि़तों के घर छोरडकर चले जाने औऱ कत्लेआम का असली सच क्या था? तो  इसको जनाने के लिए ‘वेबदुनिया’ ने श्रीनगर में रहने वाले कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू से एक्सक्लूसिव बातचीत कर कश्मीरी पंडितों के पलायन की असली वजह को सामने लाने की कोशिश की है।कश्मीरी पंडित कार्यवाही, समिति के प्रेसिडेंट संजय टिक्कू तीस साल से ज्यादा से कश्मीरी पंडितों के  परिश्रम, की आवाज उठाने के लिए कश्मीर के पंडितों के हक के लिए लड़ाई लड़ रहे है।

तीस साल पहले का पूरा कश्मीरी मामला-  इस 30 साल पहले के कश्मीरी मामले को संजय टिक्कू ने अपनी जुबान से बयान दिया जिसे यु बयान किया गया है। 

कश्मीरी पंडित संजय टिक्कू
कश्मीरी पंडित संजय टिक्कू

RATE: द कश्मीर फाइल्स(The Kashmir Files)

 

मस्जिद से हुआ एलान कश्मीर छोड़ो –

तीस साल से कश्मीर पंडितों के इंसाफ के लिए आवाज उठाने वाले संजय टिक्कू मीडिया से बातचीत के दौरान कहते हैं कि उन्होंने अब तक ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म तो नहीं देखी है परन्तु उन्होंने सन 1989 और सन 1990 में कश्मीर में जो कुछ भी हुआ है उसको सिर्फ सामने से देखा ही नहीं है बल्कि उसको सहा भी है। संजय टिक्कू ने कहा हैं कि आज भी मुझको 19 जनवरी 1990 की तारीख अच्छी तरह से याद है। जब रात्रि 9 बजे के करीब दूरदर्शन के मेट्रो चैनल पर पुरानी फिल्म हमराज आ रही थी। और घर में सब लोग बैठकर फिल्म देख रहे थे। में तक़रीबन रात 9.30 बजे के करीब घर की दूसरी मंजिल पर बैठा था और उसी दौरान मुझे दूर से कुछ आवाजें सुनाई दी, और फिर कुछ ही देर में पास की एक मस्जिद में एलान होने पर मुझे साफ सुनाई देने लगा। मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर से अलग अलग तरह के ऐलान होने के साथ नारे भी सुनाई पड़ रहे थे। उसमे धार्मिक नारों के साथ-साथ पाकिस्तान के समर्थन में भी नारे लगाए जा रहे थे और कहा जा रहा था की घर छोडकर सड़को पर बैठ जाओ। और फिर उसी बीच मज्जिद के लाउडस्पीकर से दो बार कश्मीरी पंडितों को घर छोड़कर चले जाने की ताकीद की गई।

 

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सन 1990 की वहशत भरी वो रात-

मस्जिदों से ये एलान सुनने के बाद सब लोग सड़कों पर निकल आए और तक़रीबन एक घंटे के अंदर पूरे कश्मीर के अंदर पंडितों के खिलाफ आग फैल गई। संजयthe kashmir files टिक्कू बताते हैं कि उस एलान के आज के जैसे बोल नहीं थे परन्तु जिस तरह से पूरे कश्मीर में नारे और कश्मीर के पंडितों को कश्मीर छोड़कर चले जाने की बात हो रही थी। उससे ऐसा लग रहा था कि सब कुछ पहले से प्लान का हिस्सा था। और ये बात भी गौर तलब करने की है की रात में शोर गुल कम होता है तो आवाज़ भी दूर दूर तक आसानी से पहुंच जाती है . तो इसीलिए शायद मस्जिदों में एलान करने का वक़्त रात को चुना गया ताकि आवाज़ दूर तक आसानी से पहुंच जाए। संजय टिक्कू बताते हैं कि कश्मीरी हिन्दू लोग रात भर सड़कों पर ही रहे। में जब अगले दिन सुबह बाहर निकला तो सड़कों पर भारी भरकम भीड़ थी चारों तरफ डर वहशत का माहौल बना हुआ था और कश्मीरी पंडित बड़े पैमाने पर कश्मीर छोडकर कर भाग रहे थे। और फिर इस वहशत भरे माहौल के बीच 21 जनवरी सन 1990 को एक और कत्लेआम हुआ और उस कत्लेआम में 52 लोगों को बड़ी बेरहमी से मारा गया और तक़रीबन 150 लोग बुरी तरह से घायल हुए।


हिट लिस्ट में मौजूद लोगों को निशाना बनाकर उनकी हत्याएं होती थी-

‘मीडिया ’ से बातचीत करते हुए संजय टिक्कू बताते हैं की उन दिनों में मस्जिदों के बाहर एक हिट लिस्ट लगाई जाती थी और उस लिस्ट में कश्मीरी पंडितों के नाम, और जो सरकारी नौकरी करते थे उनके के नाम मौजूद होते थे या फिर जिनको मुखबिर माना जाता था,उनके नाम उस लिस्ट में मौजूद होते थे  हिट लिस्ट में मौजूद लोगों को निशाना बनाकर उनको मार दिया जाता था। और इसके साथ ही हाथ से लिखे पोस्टर भी दीवारों पर लगाए जाते थे। और उसमें ये भी लिखा होता था कि आप लोग कश्मीर छोड़कर जल्द से जल्द चले जाइए नहीं तो मार दिए जाओग। और इस वहशत भरे डर से वो लोग जिनके परिवार से लोग मरे थे. उन्होंने कश्मीर छोड़ दिया और सरकारी कर्मचारियों ने भी अपने परिवारों समेत कश्मीर छोड़ दिया। संजय टिक्कू बताते हैं कि इस माहौल में भी कई कश्मीरी लोगे ऐसे भी थे, जिन्होंने हिट लिस्ट में मौजूद पंडितों के परिवारों को जाकर जानकारी दी , और उनकी वहाँ से निकलने में मदद की और उनकी जान बचाई।

 

हिट लिस्ट में आने के बाद भी कैसे बची परिवारों की जान?

संजय टिक्कू बताते है की सन 1990 की जनवरी- फरवरी की बात है कि हमारे पड़ोसियों ने हम लोगों और कश्मीरी पंडितों से बात करना छोड़े दी थी, बात छोड़ने के पीछे भी एक लंबी कहानी थी। उस वक़्त जब किसी कश्मीर पंडित को मार दिया जाता था तो यह लोग सामने नहीं आते थे, और ऐसा या तो डर की वजह से ऐसा था या फिर मारने वाले लोगों को वो सपोर्ट करते थे। यह वो वक़्त था जब कश्मीर पंडित निशाने पर थे और उनका कत्ल खुले आम किया जा रहा था किन्तु यह भी सच है कि 60 % कश्मीरी पंडितों को उन्हीं के पड़ोसियों ने बचाया था। उसके के साथ ही संजय टिक्कू अपने साथ हुई घटना को बताते है कि यह मेरे अपने घर के साथ ही हुआ है । कश्मीर में मेरी मौसी और उनका बेटा किराए के एक मकान में रहते थे। कश्मीर से जब कश्मीरी पंडितों कश्मीर छोड़कर कर जाने लगे तो मैं मौसी और उनके बेटे को श्रीनगर के एक घर में लेकर आ गया था। और हम लोगो ने ये सोच लिया था की  और निकलना पड़ा तो हम लोग इक्ट्ठा एक साथ निकलेंगे। मौसी और उनके बेटे को हमारे साथ घर पर रहते हुए 20 से 25 दिन हुए थे कि एक शाम को घर के दरवाजे से किसी के खटखटाने की आवाज सुनाई दी। बाहर सब जगह अंधेरा था क्यों कि उन दिनों जितनी भी गली में सरकारी लाइट थी वह तोड़ दी गई थी जिससे मारने वालों की पहचान न हो पाए। दरवाजा पर दस्तखत देने वाले शख्स ने आवाज न देकर सिर्फ  खांसा, मैं समझ गया था  कि दरवाजे पर जो भी शख्स आया है कोई जानने वाला ही है। गेट खोलते ही वह शख्स घर के अंदर आ गया और पूछा कि क्या आपका कोई रिश्तेदार आपके साथ रहता है फिर उन्होंने बताया कि मस्जिद में नमाज पढ़ने के दौरान वहां पर दीवार पर लगी लिस्ट में रिश्तेदार ऑफ काशीनाथ लिखा हुआ था। उन्होंने रिश्तेदारों को जल्द से जल्द से निकालने की बात कही। मेने फ़ौरन ही अपने रिश्तेदारों को वहां से भेज दिया और फिर इसके बाद मई के महीने में अपने रिश्तदारों को खोजने के लिए जब मैं वापस जम्मू गया तो वहां कश्मीर पंडितों के रहने के लिए बनाई गई कॉलोनी में जहां पहले जानवर रखे जाते थे वहां पर मुझे अपनी मौसी मिली।

 

फिर से 30 साल पुराना जख्म हुआ ताज़ा(The Kashmir Files)-

कश्मीरी हिंदुओं पर बहुत जुल्म हुए और इस जुल्म को सहते हुए उनको कश्मीर छोरडकर भागना पड़ा.पिछले 32 साल जिन संघर्षों को को झेला है ये एक अलग ही कहानी है लेकिन अब इस फिल्म के आने के बाद उन हिन्दुओ को आशा की किरण दिख रही है जिनके साथ ये गलत हुआ है। जम्मू-कश्मीर की सरकार अब कोशिश कर रही है उन लोगो के लिए जिनके साथ गलत हुआ उनको एक पहचान देंने की, यानी के निवास प्रमाण पत्र देने की.

 

कश्मीरी पंडितो का असली घर कश्मीर ही है(The Kashmir Files)-

बेंगलुरु में ऐसे कश्मीर से आए हुए परिवारों की संख्या तक़रीबन 500 के आसपास है.पिछले कई दिनों से यहां पर कैम्प चलाया जा रहा है, जिसमें अब तक तक़रीबन 700 लोगों का रेजिस्ट्रेशन हो चुका है और बताया जा रहा है अगले तीन से चार दिनों में बाकी लोग भी इसमे शामिल हो जाएंगे. इन लोगों में वो लोग भी मौजूद हैं जिन्होंने कश्मीर की इस घटना को खुद से ही झेला है. और वो युवा भी मौजूद हैं, जिन्होंने कश्मीर को कभी देखा नहीं,पर ये ज़रूर जानते हैं कि वो कश्मीर से ही आए हैं. कश्मीर ही उनका असली घर है. ऐसे में ये सर्टिफिकेट निवास प्रमाण पत्र उनके लिये उम्मीद की वो किरण है जो, आज नहीं तो कल उनको उनके घर लौटा सकती है. जो पहचान वो 32 साल पहले खो चुके थे वो पहचान आज उनको फिर से वापस मिलने की आशा है.

दोस्तों उम्मीद करती हूँ की आप ये पोस्ट पढ़कर जान चुकें होंगे की कश्मीर में सन 1990 में क्या हुआ था और आप द कश्मीर फाइल्स(The Kashmir Files) फिल्म बनांने का मकसद समझ चुकें होंगे और इसके पीछे का सच भी जान चुकें होंगे। तो दोस्तों अगर आपको हमारी ये पोस्ट पसंद आई हो तो इसको अपने फ्रेंड्स के साथ ज़रूर शेयर करें

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